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हिन्दुफोबिया - ज़हर वाली खीर
हिन्दुफोबिया एक ऐसा विषय है जो आजकल आम है लेकिन जनता कोई नहीं।
जिन लोगो को हिन्दुफोबिया नहीं पता क्या है तो हम आपको बता दें कि हिन्दू फोबिया वो सप्रेटे दही रायता है जो आपको आजकल हर जगह परोसा जा रहा है और आप उसे खीर समझ के खाए जा रहे हैं।
न्यूज़ चैनल्स हो, सोशल मीडिया प्लेटफार्म हो, स्कूल की टेक्स्ट बुक हो, स्टैंड उप कॉमेडी हो, स्केटचेस हो या सबकी फेवरेट वेब सीरीज हो। सब जगह आपके अंदर ये बात ठूसी जा रही है कि हिन्दू बहुत ही असहिष्णु होते हैं ...
... जो माइनॉरिटीज बहुत असुरक्षित है।
कोई भी विषय हो कही से भी कैसे भी उसे हिन्दू मुस्लिम से कैसे जोड़ा जाए और देश में आग कैसे भड़काई जाए बस यही आज के तथाकथित सेक्युलर्स का काम हो गया है।
चुनाव से पहले डेटा आते हैं कि भारत में मुस्लिम्स सेफ नहीं है 97% अटैक्स है वो 2014 के बाद से बढ़ गए हैं। और 86% मृत्यु गौ संबंधित हिंसा की वजह से हुई है। इस डेटा को कई लोगों ने भारत को असहिष्णु साबित करने के लिए इस्तेमाल किया लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म हुए ये डेटा भी डिलीट कर दिया गया यह कह कर कि ये डेटा गलत था। किसी भी वजह से किसी दलित या किसी मुस्लिम की मौत हो जाती है या हत्या हो जाती है उसे किस तरह से हिन्दू मुस्लिम एंगल देना है यह काम आज के तथाकथित सेक्युलर अच्छे से जानते हैं।
न्यूज़ आती है कि ट्रेन में बीफ लेजाते हुए या जय श्री राम न बोलने की वजह से भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला। लोगों ने न्यूज़ पढ़ी और मान लिया। जब कुछ दिन उस न्यूज़ को फॉलो करो तब पता चलता है कि ये तो कुछ और ही बात थी। किसी का ट्रैन की सीट को लेकर झगड़ा था तो कोई चोरी करते पकड़ाया था। लेकिन लोगो को ये बात नही पता क्योंकि आलरेडी उनके दिमाग में एक फेक न्यूज़ कब्ज़ा कर चुकी है कि इनटॉलेरेंस बढ़ चुका है।
एक और बात, हो सकता है आप नास्तिक है आप नहीं मानते भगवान को लेकिन सारे जोक्स हिन्दू गोड्स पर ही क्यों? क्योंकि किसी और पर जोक्स मारोगे तो ये होगा।
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सेलेक्टिव आउटरेज आजकल एक और बड़ी समस्या बन गयी है। अगर आप केवल एक तरह के क्राइम जो एक पर्टिकुलर कम्युनिटी के साथ हुए है उनकी बात करेंगे लेकिन वैसे ही क्राइम दूसरी कम्युनिटी के साथ हुए हैं उनके बारे में नहीं बोलना चाहेंगे तो माफ कीजियेगा आप सेक्युलर नहीं है। आपकी चॉइस क्लियर है ना क्योंकि जब कोई व्यक्ति लिंच किया जाता है तो पहले आप उसका नाम उसका सरनेम देखते हैं कि ये माइनॉरिटीज से है क्या ! अगर है तो फिर आपका आउटरेज बाहर आता है वर्ना फिर आप बात ही नहीं करते।
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आप आसिफा की बात करते हैं लेकिन ट्विंकल की नहीं, आप तबरेज़ की बात करते हैं लेकिन पालघर के साधु की नहीं, आप खाड़ी में मारे गए टेररिस्ट को सपोर्ट करते हैं लेकिन कश्मीरी पंडित अजय पंडिता की नहीँ। गौरी लंकेश की बात करते हैं लेकिन कमलेश तिवारी की नहीं। ये नाम शायद आपको पता भी नहीं होगा। श्याम प्रसाद, ऋतुपर्ण पगु, अनंदन , निर्मल और भी कई नाम है जो आपको याद नहीं होंगे क्योंकि ये इंसिडेंट्स हुए और बस उड़ गए हवा में कोई प्रोटेस्ट नहीं, कोई तख्त नहीं। ये सेलेक्टिव आउटरेज ही आपके सुडो सेक्युलर होने का प्रूव है।
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इस हिन्दू फोबिया का एक और सबसे बड़ा ज़रिया है मीडिया। जी हां, ऐसी कई सारी खबरें है जहाँ टाइटल में दोषी बाबा, साधु, तांत्रिक लिखा होता है और आप जब उस न्यूज़ को खोल कर देखेंगे तो उसमें बाबा का नाम निकलता है असलम, इरफान। न्यूज़ आती है कि नागरिक मारे गए न्यूज़ खोल के देखो तो वो आतंकवादी होते हैं। उनकी बैक स्टोरीज होती है उन्हें इनोसेंट दिखाने की कोशिश होती है।
इस तरह के कई केसेस है जो आम है। ये सब हिन्दुफोबिया का वही रायता जो आपको परोसा जा रहा है। अब इसे खाना है या नहीं वो आपकी चॉइस है।
सेहत जगत
महामारी के इस अवसादी समय में मनुष्य
अलग-अलग मानसिक परिस्तिथियों से जूझ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण कोविड 19 से फैली नकारात्मकता है। कोविड 19 के कारण लोगो के रोजगार उनके दैनिक जीवन और रिश्तों पर भी असर पड़ा है।
हम आए दिन खबरों में देख सकते है , लोग इस हद तक तनाव में है। इस तनाव और अवसाद के कारण अपने मूल्यवान जीवन को अंत करने तक का निर्णय ले बैठते हैं। और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
ऐसे समय मे आपको और हमें क्या करना ये समझना बेहद जरूरी है ।
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अवसाद का अर्थ क्या है ? अवसाद या डिप्रेशन का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों संबंधी दुख से होता है।
जिसके सबके व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं।
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अगर आपके आसपास किसी व्यक्ति के व्यवहार में कोई असमान्य बदलाव देख रहे है। तो सबसे पहले उस व्यक्ति को बात करने के लिए सहज करे ताकि आप उस व्यक्ति से जुड़ी परेशानियों को समझ सके उसे उत्साहित करने की कोशिश करे ।
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अवसाद को दूर करने के कुछ तरीके जिसे आप अपना सकते है।
किसी करीबी मित्र या परिवार के सदस्यों से सहजतापूर्ण अपनी परेशानी के बारे में बताने की कोशिश करे।
मनोचिकित्सक की सलाह भी ले ।
आठ घंटे की नींद लेवे नींद पूरी होगी तो दिमाग तरोताजा होगा और नकारात्मक भाव मन में कम आएंगे। प्रतिदिन सूरज की रोशनी में कुछ देर जरूर रहें इससे अवसाद कम होगा। बाहर टहलने जाएं। अपने काम का पूरा हिसाब रखें।
सकारात्मकता को बनाए रखने के लिए वो चीज़े करे जो आपको खुशी प्रदान करे।
ध्यान व योग को दिनचर्या में शामिल करें।
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